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प्रो. सत  प्रकाश बंसल जी

भारतीय शिक्षण मंडल हिमाचल प्रांत एवं हिमाचल प्रदेश केंद्रीय  विश्वविद्यालय धर्मशाला के तत्वावधान में व्यास पूजा महोत्सव का आयोजन दिनांक 6 अगस्त 2021 को सायं 6:00 बजे प्रारंभ हुआ ।

इस परिचर्चा  का  शीर्षक 'प्राचीन विद्या : गुरु- शिष्य परंपरा' था । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. सत  प्रकाश बंसल जी रहे, जो  वर्तमान में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं ।  इस व्यास पूजा कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ. उमाशंकर पचौरी जी जो भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री जी की  सार्थक उपस्थिति रही । हिमाचल प्रांत के प्रांत विस्तारक कौशल जी ने ध्येय- मंत्र से कार्यक्रम का प्रारंभ किया।  कार्यक्रम के निदेशक एवं वर्तमान में भारतीय शिक्षण मंडल हिमाचल प्रांत के प्रांत अध्यक्ष कुलभूषण चंदेल जी ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ताओं से औपचारिक परिचय कराया तदुपरांत हिमाचल प्रांत के सह संपर्क प्रमुख डॉ. ओम प्रकाश प्रजापति जी ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर सत प्रकाश बंसल जी से आग्रह किया कि वे  प्राचीन विद्या के आलोक में गुरु-शिष्य परंपरा पर अपने विचार रखें । 

अपने उद्बोधन में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ने गुरु को अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाले प्रकाशमान पुंज की तरह कहा ।उन्होंने गुरु को पेपरवेट की तरह महत्वपूर्ण माना जो वासना के पन्नों को व्यवस्थित दिशा देता है । मुख्य अतिथि महोदय ने कहा कि भारतीय परंपरा में व्यास जी को हिंदू धर्म का पिता कह सकते हैं, आज भी जिस पीठ से ज्ञान की गंगा निकलती है उसे व्यासपीठ कहा जाता है । उन्होंने समग्र जीवन को ज्वार-भाटा के खेल के सदृश, आंख मिचौली के सदृश माना जहां उतार-चढ़ाव आते हैं। जीवन में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का आना जाना लगा रहता है किंतु प्रत्येक स्थिति में संयम एवं धैर्य की प्रेरणा गुरु से प्राप्त होती है ।  विवेकानंद के जीवन के प्रसंग पर बात करते हुए माननीय मुख्य अतिथि महोदय ने कहा कि देश में चरित्र निर्माण का आचार-विचार गुरु से प्राप्त होता है । आज अहम भाव के कारण हमारे सारे रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, अहम भाव कैसे टूटे ?और उसकी जगह सार्थक विचारों का पोषण कैसे हो ? इस ओर भी उन्होंने संकेतित किया ।  उन्होंने स्पष्ट कहा कहा कि गुरु सर्वदा अपने शिष्य का हित करता है, एक गुरु को सदैव विनयी होना चाहिए ।  इस संदर्भ में द्रोणाचार्य- अर्जुन, विवेकानंद-रामकृष्ण परमहंस आदि के सार्थक उदाहरण भी उन्होंने अपने वक्तव्य में रखे  । कुल मिला जुला कर सार रूप में कहें तो उनका वक्तव्य पूर्णत: संघर्षों एवं  विश्वास के धागों से बुना हुआ था । 

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री डॉ. उमाशंकर पचौरी जी ने अपने वक्तव्य में भारतीय मूल्यों की पड़ताल की ।  उनका पूरा वक्तव्य गुरु और शिष्य के बीच सामंजस्य पैदा करने वाला था,उन्होंने  कहा कि गुरु सूचना प्रदाता नहीं है, अधिकांश पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली गुरु को सूचना प्रदाता मानती है और यहीं विविध प्रकार की विषमता दिखाई पड़ती है  । गुरु सूचना नहीं देता, गुरु वाणी में पवित्रता, शब्द में सार्थकता धारण करने की क्षमता का विकास करता है । माननीय पचौरी जी ने कहा कि दुनिया में वही सफल हैं जो अपने मन को जीतते हैं, जो मन के स्वामी हैं और मन पर नियंत्रण करने की जो कला है वह शिष्य को गुरु से प्राप्त होती है । एक शिष्य को सदैव श्रद्धा से परिपूर्ण होना चाहिए जो श्रद्धा से परिपूर्ण नहीं होता उसका कदाचित विकास नहीं हो पाता । इस संदर्भ में उन्होंने दुर्योधन का उदाहरण रखा और बताया कि एक प्रकार की शिक्षा दिए जाने के बाद भी  श्रद्धा ना होने के कारण दुर्योधन द्रोणाचार्य से कुछ न सीख सका ।  चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे गुरु- शिष्य की व्यवस्थित भारतीय परिपाटी पर भी उन्होंने बातचीत की ।  चाणक्य सेल्यूकस के संवाद के माध्यम से उन्होंने बताया कि चाणक्य कहते हैं- " एक आचार्य कभी अपने राष्ट्रहित से पराडमुख नहीं हो सकता ।" भारतीय परंपरा का आलंबन गुरु से प्राप्त होता है जीवन की धुरी गुरु है सम्माननीय पचौरी जी ने मन मुख से गुरुमुख होने की बात पर भी बल  दिया और कहा कि आज की व्यास पूर्णिमा की सार्थकता यही है कि हम मन मुख से गुरुमुख हो सकें ।

डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति, सह - संपर्क प्रमुख, भारतीय शिक्षण मंडल, हिमाचल प्रान्त एवं  सहायक प्रोफेसर हिंदी विभाग, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व में पुरातन संस्कृति है जो गंगा में प्रवाह के समान निरंतर बह रही है जिसने अनेक कठिनाइयों और समस्याओं को पार करते हुए भी अपनी अविरल धारा को सतत बनाए रखा है । 

गुरु परंपरा इसी प्रवाहमान संस्कृति का एक प्रतीक है । जब गुरु अथवा शिक्षक को  समाज में सम्मान मिलेगा तभी समाज  स्वाभिमानी तथा राष्ट्र समर्थ बनेगा । विद्यार्थियों मे शिक्षकों के प्रति यह सम्मान स्थापित करने के लिए विभिन्न शिक्षा संस्थान में भारतीय शिक्षण मंडल व्यास पूजा का कार्यक्रम आयोजित करता है। 

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. आशीष नागजी ने धन्यवाद ज्ञापन किया । एवं कार्यक्रम के अंत में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य डॉक्टर शैलेंद्र जी ने कल्याण मंत्र से कार्यक्रम का समापन किया ।



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